Thursday, 12 December 2013

हरिवंशराय बच्चन की अनुवाद दृष्टि

Title: हरिवंशराय बच्चन की अनुवाद दृष्टि
Author: अनिल पुष्कर कवीन्द्र 
Publisher: Ruby Press & Co.
ISBN: 978-93-82395-20-1
First Edition: 2014
Language: Hindi
Category: Literary Criticism

About The Author:
Anil Pushker Kaveendra was born in Allahabad on 2nd October. He finished his undergraduate studies from Ewing Christian College, Allahabad. Later he came to New Delhi for higher studies and completed MA in Hindi Literature from JNU. He got inspired by the culture of JNU so much that he continued studying there and obtained M.Phil and Ph.D degrees in Hindi Translation. During M.Phil, he translated ‘A Summer of Tigers’ by Keki N. Daruwala whereas his Ph.D was based on comparative study of Harivansh Rai Bachchan’s translated works.


Kaveendra’s literary activities started when he was just 12 years old. Since then he started exploring different forms of literature including poems, stories, novels, plays, and script writing and has got many of these published in various famous Hindi magazines. He also worked as Production Assistant for Muse of Murmur - Art & Poetry Collection 2008. Currently, he is a part in the Editorial Team of the Selected Works of Jawaharlal Nehru, Jawaharlal Nehru Memorial Fund, New Delhi, where he prepares and finalises hindi speeches. He is also actively involved in many social, cultural, artistic and literary activities including Argalaa.

Review of The Book: 

By Ajit Kumar, Hindi Department, Kirorimal College, University of Delhi (Writer, Poet, Critic, Edited – Harivans Rai Bachchan Rachnawali Volume-1-9 )

अनिल पुष्कर द्वारा प्रस्तुत यह पुस्तक सूझबूझ, अध्यवसाय और परिश्रमपूर्वक लिखी गई है । उसमें ऐसे सूत्र भी निहित हैं जो आगामी शोधकार्यों के लिए सहायक तथा प्रेरक हो सकते हैं ।

जहाँ तक विषय के निरूपण और प्रतिपादन का सम्बन्ध है, उन्होंने सामग्री का विधिवत अध्ययन किया है और संगत निष्कर्षों तक पहुँचे हैं जिनमें, विशेष यह है कि बच्चन के अनुवाद उनके सृजन कार्य का स्वाभाविक और अन्तरंग विस्तार है ।

बच्चन के अनुवादों की इस सबसे बड़ी विशेषता को शोधकर्ता ने समझा और रेखांकित किया है, कि उन्होंने अपने सर्जक को केंद्र में रखते हुए अनुवाद किए, न कि आजीविका के लिए, नक़ल के लिए या किसी अन्य बाहरी दबाव से । इसका एक प्रमाण यह है कि जहाँ निराला जैसे बड़े कवि ने रामचरित मानसका अवधी से खड़ी बोली में अनुवाद करना आवश्यक समझा, वहाँ बच्चन ने अपने इस परम प्रिय कवि के प्रति अनुरक्ति इस रूप में व्यक्त की, कि उनके विनय पत्रिकाके वज़न पर अपनी उत्तरकालीन कविताओं के संचयन का नाम प्रणय पत्रिकारखा । यही नहीं तुलसी की अवधी को मानक बनाते हुए उन्होंने संस्कृत में लिखित भगवत गीताका अवधी अनुवाद जन गीताके नाम से और खड़ी बोली में नागर गीताके नाम से अनुवाद करते हुए मूल कृति को साधारण जन तक पहुँचाने की चुनौती स्वीकार की । श्री पुष्कर ने आरंभिक पृष्ठों में बच्चन के सृजन की प्रेरणा का विवेचन करते हुए कवि का उद्धरण दिया है कि ‘‘मुझे चुनौती से ही बल मिलता है’’ वह कवि के अनुवाद कर्म को समझने में विशेष सहायक होगा । क्योंकि मौलिक लेखन जहाँ बहुधा स्वतः स्फूर्त या अनायास होता है, वहाँ अनुवाद सामान्यतः परिश्रमसाध्य कर्म होता है, जिसे दम साधकर पूरा करना पड़ता है । खै़याम की मधुशालाभी बच्चन कृत एक ऐसा अनुवाद है, जिसका जुड़ाव जितना कवि की आरंभिक मधुभावनासे था । उतना ही तत्कालीन सामाजिकराष्ट्रीय चेतना से भी । शेक्सपियर के नाटकों और यीट्स की कविताओं के अनुवाद भी अँग्रेज़ी के अध्येताअध्यापकशोधकर्ता के स्वाभाविक प्रतिफलन रहे, जिस तरह कि देशविदेश के अन्य कवियों की रचनाओं के अनुवाद उनके कविकर्म के प्राकृतिक विस्तार थे ।

केवल दो ही अनुवाद बच्चन के ऐसे हैं– ‘‘चौसठ रूसी कवितायें’’ और ‘‘नेहरू : राजनीतिक जीवनचरित’’ जिन पर किन्हीं अर्थों में यह टिप्पणी की जा सकती है कि वे इतर प्रयोजनों से प्रेरित हुए । लेकिन श्री पुष्कर ने इस क़िताब में कवि की यह उक्ति रेखांकित की है कि जीवन से झगड़ने की जगह उसकी स्थितियों को स्वीकारना ही सम्यक दृष्टि है तो विदेश मंत्रालय के अधिकारी की हैसियत से यदि बच्चन ने उस अवधि में देश के परम मित्र सोवियत रूस के कवियों की रचनाओं का अनुवाद करना या तत्कालीन प्रधानमन्त्री और देश के हृदय सम्राट की जीवनी के अनुवाद में संलग्न होना स्वीकार किया तो इसमें कुछ भी अटपटा न था । विदेश मंत्रालय में हिन्दी के विशेष अधिकारी को अपनी भाषा की शक्ति और क्षमता बढ़ाने की जो ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी, उसे वे इस तरह निभाने के प्रयास में संलग्न हुए । इस तथ्य का उल्लेख बच्चन जी ने आत्मकथा में एकाधिक बार किया है कि उनका दायित्व भारत सरकार के कामकाज में हिन्दी को लागू करना उतना अधिक न था, जितना हिन्दी को सक्षम, समर्थ बनाने में सहयोग देना ।

शोधकर्ता ने इसे भलीभाँति समझकर कवि बच्चन के अनुवाद कार्य को उनके सर्जक का स्वाभाविकसहज विस्तार बताया है । इस भाँति दोनों प्रयोजन सिद्ध हो सके । यही नहीं, पारस्परिकता भी संपुष्ट हुई । शोधकर्ता के किंचित निजी सन्दर्भ या रचनाएँ भी, मार्मिकता के बावजूद, अनमोल प्रतीत होती हैं । 


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